वसुधैव कुटुम्बकम् की मूलाधार में निहित है भारतीय कालजयी संस्कृति
संस्कृति किसी राष्ट्र की है आत्मा
मदन प्रसाद भगत, पूर्व मुखिया पाकुड़िया पंचायत
आर्यावर्त सनातन काल से ही एक अतिविशिष्ट सांस्कृतिक राष्ट्र रहे और इसकी मूल अवधारणा में “वसुधैव कुटुम्बकम्” है। कहते हैं, किसी राष्ट्र/देश की सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, प्रशासनिक आदि की ज्ञात हेतु उस राष्ट्र के मूल प्रामाणिक ऐतिहासिक, साहित्य का गहन मनन एवम चिंतन की अत्यावश्यकता होती है। भारतीय संस्कृति आध्यात्मिक व धर्म यानि कर्म आधारित होने से इसमें, संवेदनशीलता, मानवीयता, विनयशीलता आदि मानवीय सदगुणों से परिपूर्ण है।
कर्म आधारित होने के कारण सनातन संस्कृति में इन दिनों की भाँति जातीय संकीर्णता नहीं रही।जिन्होंने वेद, वेदांग आदि तथा आत्मा, परमात्मा ऐसे गुढ़ विषयों में रत रहे वे लोग ब्रह्मण विद्वान कहलाये। वहीं समाज की रक्षा और राजनैतिक क्रियाकलापों में लीन रहे समूह को क्षत्रिय कहा गया व जिन लोगों की रूचि ब्यापार में रही उन्हें बनिक कहा गया जबकि वैसे लोग जिनकी पेशा सेवा रही उन्हें सूद्र कहा गया। लेकिन वैदिक संस्कृति में सूद्र कभी अछुत या उपेक्षित नहीं समझा गया। प्राप्त जानकारी के मुताबिक भारत वर्ष के ऐतिहासिक काल खण्ड में कलियुग में भी महाप्रतापी राजा जनमेजय, विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त मौर्य व गुप्त काल में बड़े वीर शौर्यवान, शक्तिशाली राजाओं का राज्य रहा जो प्रजापालक रहे। तदुपरांत ईशा के 10सदी तक अंतिम हिन्दू महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने राज किया। लेकिन पृथ्वीराज के प्रतिद्वन्दी एवम द्वेष के भाव रखने के कारण विदेशी आक्रांता, लूटेरा गौरी को चौहान से बदला लेने हेतु बुलाया पर 17बार रणभूमि में पराजय होने के बाद कपट बुद्धि से चौहान को आंखें फोड़ बंदी बना कर अफगान लेता गया। परन्तु वीर पुरुषों की रण कौशल व शब्द भेदी बाण से चौहान ने उसे मौत की नींद सुला दी।
इसके पूर्व कालयौवन, शिकंदर से लेकर 10वीं शताब्दी तक जितने भी आक्रांता भारत पर विजय की कामना लेकर आये वे सभी काल के ग्रास बना दिये गये या भारत की उदार संस्कृति में घुल मिल गये। कहते हैं आदिमाता माँ भगवती से सर्वप्रथम त्रिदेवों की सृष्टि हुई और इनसे ही जल, पवन, आकाश, अग्नि, पृथ्वी की रचना हुई। ब्रह्मदेव ने प्राणियों की रचना से पूर्व, सप्तऋषियों का सृजन तप के बल पर अपने शरीर के अंगों से कर अधिकार सौंपते हुए चार वेदों की रचना की।
वेद यानी ज्ञान। कारण ज्ञान, विज्ञान के बिना मानव का उत्थान कतई सम्भव नहीं। विश्व सृजन के संकल्प लिए त्रिदेवों ने मानव जिन्हें ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना कहा गया है और प्राणियों के अलावे अन्य सर्जन का काम होता गया। कहा गया है कि मानव अपने बुद्धि कौशल, संकल्प तथा सत्यकर्म के बल पर देव बनता है। अन्यथा अधर्म का सहारा लेना और प्राणियों को पीड़ित करने पर काल के गाल में समा जाता है।
बहरहाल हम सनातनियों या हिन्दुओं के लिए गम्भीर रुप से चिंतन, मनन करने का समय है। यह कि यदि हमारी संस्कृति इतनी विशाल व पौरूष पूर्ण है जिसकी विशिष्टता ने हमें विश्वगुरु बनाया यह तो अकारण नहीं हो सकता।कहते हैं जिस राष्ट्र तथा देश का अति गौरवशाली अतीत रहा हो उस राष्ट्र का वर्तमान गौरवशाली व आत्मबल से परिपूर्ण रह विकसित भविष्य गढ़ने को उत्सुक रहते हुए विश्व का मार्ग दर्शन करेगा। परन्तु संभवतः हम परतंत्रता काल में अपने गौरवशाली अतीत को भुलकर विदेशियों विशेष कर अंग्रेजों की कुटिलतापूर्ण नीति के परमुखापेक्षी बन हीनता की बोध लिये नैराष्य की गहरी खाई में गिरते जा रहे हैं और इसे ही हम नियति मान अपनी सर्वोच्च सांस्कृतिक धरोहरों पर दोषारोपण करते हुए अपना कर्तव्य समझते रहे।
एक हजार वर्ष तक गजनी, गौरी, मुगलों आदि के साथ भारतीय सम्पदा को जी भर कर लूटने पर भी वे भारत को कंगाल नहीं बना सके। लेकिन भारत में अमानवीय अत्याचार, महिलाओं का अपहरण, धर्मान्तरण, बलात्कार ऐसे अनाचार सनातनियों को सदैव धिक्कारती रहेगी पर अंग्रेजों ने हमें अपनी कपटपूर्ण व कुटिल नीति के बल पर हमें भारतीय संस्कृति, धर्म आदि के प्रति घृणा, अनादर की भावना भर कर सनातन सांस्कृतिक मूल्यों को अपार क्षति पहुंचाई और जिसका कुपरिणाम हमें भोगना पड़ रहा है और हम सनातनियों के गहरे घाव को बुरी तरह कुरेदा स्वतंत्रता लेने के बाद भारत वर्ष के तत्कालीन शासकों ने जो सनातन धर्म, संस्कृति व सांस्कृतिक मूल्यों की भरपूर उपेक्षा करते हुए विदेशी आक्रांताओं की महिमा हेतु भारत की मान्य सांस्कृतिक ऐतिहासिक विषयों से छेड़छाड़ करते हुए,सनातन संस्कृति को विद्रूप दिखा कर पीढ़ी दर पीढ़ियों के आत्मबल, मनोबल पर गहरी चोट कर हीनता के भाव भरते रहे।
यद्यपि सनातन या हिन्दु संस्कृति देव कालजयी संस्कृति है जिसका कभी समापन नहीं होता और दिन प्रतिदिन विस्तार लेती रही है और लेती रहेगी। हालांकि काल के प्रभाव के कारण इस पर आक्षेप व कुटारा घात करने की असफल चेष्टा संस्कृति व भारत विरोधी तत्वों की ओर से होती रहेगी परन्तु वे कदापि सफल नहीं होंगे और ऐसे तत्व का पराभूत होता रहेगा यह वेद वाक्य है। लेकिन हमें मौन धारण व निर्पेक्ष नहीं रहना है तथा अपने कर्तव्य पथ पर बढ़ते हुए अपनी रक्षा तथा देश की सुरक्षा हेतु तत्पर रहना ही धर्म यानि कर्तव्य निष्ठा है।
यदि हम सनातनी भाग्य व भगवान के भरोसे धर्म भुलकर मौन रहेंगे तो भाग्य व भगवान भी साथ नहीं देंगे। हमारी कालजयी देव संस्कृति में ऐसे-ऐसे प्रमाण भरे पड़े हैं जो हमारे मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे। हमें स्मरण होना चाहिए कि क्या भगवान कृष्ण गोवर्धन पर्वत को उठा नहीं सकते? लेकिन यहाँ लोगों का सहयोग लेना पड़ा। इसके माध्यम से भगवान संकेत दे रहे हैं कि आप सचेत होकर सामुहिक रुप चेष्टा करेंगे तभी हम आपकी सहायता करेंगे। यह सर्वविदित है कि भारतीय संस्कृति पूरे विश्व को एक परिवार मानता रहा है और मानवता का पक्षधर रहे सबों की प्रगति में विश्वास रखता है।जिसका उदाहरण शश्रुता पूर्ण भावना रखने वाले देशों को भी भारत ने मानवीय स्तर पर कोरोना काल में औषधि प्रदान की। इन दिनों इजराइल-हमास युद्ध में भी फिलिस्तीनियों के लिए दो बार राशन व जरुरी समानों को भेजा।हालाँकि भारत वर्ष फिलिस्तीन का समर्थन करता है पर हमास ऐसे आतंकियों का विरोध करता रहा। आए दिन विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों से स्पष्ट होता है कि ऐसे सनातन तथा भारत विरोधी तत्व समाजिक समरसता को बाधित करते हुए देश की प्रगति को क्षति पहुँचाते रहे हैं। सनातनियों के किसी भी त्योहार के शुभ अवसरों पर पत्थर फेंककर अराजकता पैदा करना इनकी मानसिकता रही है। इनका त्योहार मुर्हरम तथा अन्य पर्व पर भी ऐसे तत्व भारत विरोधी नारे लगा कर माहौल को बिगाड़ते रहे हैं।
इधर तीनों राज्यों में भाजपा की प्रचण्ड जीत के अवसर पर इंदौर में भारत व हिन्दु विरोधियों ने गर्म पानी फेंक कर अपनी देश विरोधी मानसिकता दर्शा ही दिया। सनातनियों ने स्वतंत्रता के पूर्व भी तुर्की के खलिफा का समर्थन कर साथ दिया परिणाम भारत के लोग देख चुके हैं। भारत में अब भी मौके से मौके राष्ट्र तथा हिन्दु विरोधी गतिविधियाँ जारी है, परन्तु कोई भी राजनैतिक दल तथा मुस्लिम संगठन कभी ऐसे कारनामों की सार्वजनिक स्तर पर निंदा नहीं की। क्यों? उल्टे हिन्दुओं को ही कटघरे में खड़ा किया जाता रहा है। इजराइल व हमाम युद्ध के दौरान भी भारत वर्ष ऐसे शांतिप्रिय राष्ट्र में आतंकियों का खुलकर समर्थन करते हुए देश के प्रधान मंत्री को भी अपशब्द कहने में संकोच नहीं किया गया। यद्यपि भारत की राष्ट्रीय नीति के आलोक में फिलिस्तीन देश का समर्थन भारत तथा सरकार करते रहे हैं और दो बार मानवीय स्तर पर औषधि सहित जरुरी सामान भेजे गए। लेकिन भारत ने राष्ट्रीय नीति के आलोक में आतंकवादियों व आतंकी गतिविधियों का सदैव विरोध किया है और करता रहेगा।
स्मरण रहे पिछले दिनों थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में में बड़े पैमाने पर आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम के अवसर पर विश्व के 61 देशों के बीस सौ से अधिक धार्मिक गुरुओं, विभिन्न संगठनों ने भाग लेकर सनातन धर्म का गहन चिंतन-मनन करते हुए सनातन धर्म के सच्चे स्वरुप एवम कालजयी दर्शन को परिभाषित करते हुए हिंदुइज्म को सदा के लिए नकार दिया।आयोजित कार्यक्रम में एक सौ से अधिक देशों के 120 करोड़ सनातनियों के लिए हिन्दुनेस यानि हिन्दुइज्म, हिन्दुवाद के स्थान पर हिन्दुत्व को स्वीकृति प्रदान की गयी। हिन्दुत्व कोई वाद नहीं है यह एक जीवन शैली है जो आध्यात्मिकता पर पूर्णतः अवल्बित रहते हुए विश्व को एक परिवार मानता रहा है और मानवता का पक्षधर रहा है।बहरहाल यदि। भारत के लोग विशेष रुप से हिन्दुओं ने यह समझ रखा है कि चलो यह ऐसे तत्वों की मानसिकता है इसे बदला नहीं जा सकता तो ऐसी सोच राष्ट्रघाती परिणाम देता रहेगा। अपितु दुसरों की सोच तथा मानसिकता को छोड़ हमें अपनी राष्ट्रीय हित की मानसिकता रखते हुए परशुराम की भाँति आतताईयों का प्रतिकार करने की मानसिकता रखने है। तभी भारत तथा सनातनी पूरे विश्व में स्वभिमान तथा मानवता की रक्षा करते हुए बिना दुसरों पर अपना विचार थोपते हुए चैन से रह सकेंगे।