May 15, 2024
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यक्ष्मा और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर आईसेक्ट विश्वविद्यालय में सेमिनार का आयोजन

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यक्ष्मा और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर आईसेक्ट विश्वविद्यालय में सेमिनार का आयोजन

हजारीबाग। आईसेक्ट विश्वविद्यालय, हजारीबाग के तरबा-खरबा स्थित मुख्य कैंपस सभागार में गुरुवार को यक्ष्मा व मानसिक रोग को लेकर सेमिनार का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ पीके नायक, कुलसचिव डॉ मुनीष गोविंद व कार्यक्रम में शामिल मुख्य वक्ताओं के हाथों दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम की शुरुआत की गई। इसके बाद मनोविज्ञान विभाग की सहायक प्राध्यापिका प्रीति वर्मा ने स्वागत भाषण दिया। मौके पर यक्ष्मा संबंधित अहम जानकारियों के साथ साथ मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे सिरदर्द, नशे की लत, मोबाइल एडिक्शन, अवसाद, याददाश्त व एकाग्रता की कमी, आत्महत्या की प्रवृत्ति सहित अन्य पर विस्तार से चर्चा की गई। मनोरोग पर कार्य करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता स्वाति कुमारी मौके पर संबोधित करते हुए कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मानसिक स्वास्थ्य सलामती की एक स्थिति है, जिसमें किसी व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का एहसास रहता है। वह जीवन के सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, लाभकारी और उपयोगी रूप से काम कर सकता है और अपने समाज के प्रति योगदान करने में सक्षम होता है। उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य एक आधारभूत मानव अधिकार है, जो व्यक्तिगत, सामुदायिक व सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। वहीं एनएलपी वेलनेस कोच और माइंड ट्रेनर डॉ रविंद्र कुमार विश्वकर्मा ने एनएलपी का जिक्र करते हुए कहा कि एनएलपी व्यावहारिक मनोविज्ञान के क्षेत्रों में से एक है। यह दैनिक जीवन में उनके बाद के उपयोग के लिए अनुप्रयुक्त तकनीकों व मॉडलिंग तकनीकों को विकसित करने का कार्य स्वयं निर्धारित करता है। उन्होंने कहा कि न्यूरो-भाषाई प्रोग्रामिंग (एनएलपी) व्यवहार, सफल लोगों की जीवन शैली और वैज्ञानिक निष्कर्षों को पुन: चक्रित करता है, जिससे वे जनता के लिए उपलब्ध हो जाते हैं। इस आधुनिक और निरंतर विकासशील क्षेत्र की सहायता से व्यावहारिक मनोविज्ञान की विधियों को स्वतंत्र रूप से दैनिक जीवन में लागू किया जा सकता है। टीबी एलिनिमेशन नामक संस्था के कोषाध्यक्ष ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे तथा टीबी जैसी महामारी आपस में जुड़े हुए हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर और उसकी वजह से टीबी के इलाज पर हो रहे दुष्प्रभाव पर अच्छी तरह ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। ये आज भी उनके लिए बड़ी चुनौती है। इसलिए वर्तमान समय में मरीज़ को बीमारी से लड़ने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है । आईसेक्ट विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ पीके नायक ने भी माना कि वर्तमान में तनावग्रस्त जीवनशैली के कारण मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा है, जिसपर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। वहीं कुलसचिव डॉ मुनीष गोविंद ने सेमिनार में मौजूद विद्यार्थियों को परीक्षा के समय तनाव नहीं लेने, कैरियर संबंधित सलाह एवं भविष्य में किसी भी प्रकार का नशा ना करने की सलाह दी। मनोविज्ञान के क्षेत्र में काम कर रही संगीता कुमारी, शीत कुमार, आईसेक्ट विश्वविद्यालय के डीन एकेडमिक डॉ बिनोद कुमार व डीन एडमिन डॉ एसआर रथ ने भी कई महत्वपूर्ण जानकारियां मौके पर साझा किए। धन्यवाद ज्ञापन खगेश्वर कुमार ने किया।

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