सत्संग… भागवत कथा का 5वां दिन, शास्त्री बोले- कथा सुनने से आत्मशांति प्राप्त होती है और भजन में ही जीवन का सार होता है – कथावाचिका रौशनी शास्त्री
झारखंड न्यूज 24 संवाददाता संजय गोस्वामी फतेहपुर
बिंदापाथर थाना क्षेत्र के बांदो ग्राम में श्रीमद्भागवत कथा आयोजन को लेकर जनमानस में श्रद्धा और भक्ति बना हुआ है। एक सप्ताह तक के इस कार्यक्रम से शाम ढलने के साथ ही भक्त वैष्णवों की भीड़ उमड़ने लगती है। कथामृत प्रस्तुतिकरण के पांचवे दिन वृन्दावन धाम के कथावाचिका धर्मप्राण देवी रौशनी शास्त्री जी के द्वारा श्रीमद्भागवत कथा के अंतर्गत “भगवान श्री कृष्ण का बाल लीला एवं गोवर्धन पर्वत लीला, भगवान को छप्पन भोग समर्पित आदि” का मधुर वर्णन किया। इस मर्मस्पर्शी प्रसंग का व्याख्यान करते हुए कहा की बालकृष्ण हैं तो अर्जुन को ‘गीता’ का ज्ञान देने वाले योगेश्वर कृष्ण। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल में अनेक लीलाएँ की है। प्यारे कृष्ण आपकी एक-एक लीला मनुष्यों के लिए परम मंगलमयी और कानों के लिए अमृतस्वरूप हैं। जिसे एक बार उस रस का चस्का लग जाता है, उसके मन में फिर किसी दूसरे वस्तु के लिए लालसा ही नहीं रह जाती। भगवान श्री कृष्ण ने गृह लीलाएँ तब की, जब वे मात्र छह दिन के थे। चतुर्दशी के दिन पूतना आई। जब भगवान तीन माह के हुए तो करवट उत्सव मनाया गया तभी शकटासुर आया। भगवान ने संकट भंजन करके उस राक्षस का उद्धार किया। इसी तरह बाल लीलाएँ, माखन चोरी लीला, ऊखल बंधन लीला, यमलार्जुन का उद्धार आदि दिव्य लीलाएँ कीं। श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला दिव्य है और हर लीला का महत्व आध्यात्मिक है। श्री शुकदेवजी कहते हैं- “परीक्षित नन्दबाबा जब मथुरा से चले, तब रास्ते में विचार करने लगे कि बसुदेवजी का कथन झूठा नहीं हो सकता। इससे उनके मन में उत्पात होने की आशंका हो गयी। तब उन्होंने मन-ही-मन ‘भगवान की शरण ली है, वे ही रक्षा करेंगे’ ऐसा निश्चय किया। पूतना नाम की एक बड़ी क्रूर राक्षसी थी। गोकुल में नन्दबाबा ने पुत्र का जन्मोत्सव बड़े धूम-धाम से मनाया। ब्राह्मणों और याचकों को यथोचित गौधन तथा स्वर्ण, रत्न, धनादि का दान किया।कर्मकाण्डी ब्राह्मणों को बुलाकर बालक का जातिकर्म संस्कार करवाया। पितर और देवताओं की अनेक भाँति से पूजा-अर्चना की। पूरे गोकुल में धूमधाम से उत्सव मनाया गया। कुछ दिनों पश्चात् कंस ढूंढ-ढूंढ कर नवजात शिशुओं का वध करवाने लगा। उसने पूतना नाम की एक क्रूर राक्षसी को ब्रज में भेजा। पूतना ने राक्षसी वेष तज कर अति मनोहर नारी का रूप धारण किया और आकाश मार्ग से गोकुल पहुँच गई। गोकुल में पहुँच कर वह सीधे नन्दबाबा के महल में गई और शिशु के रूप में सोते हुये श्रीकृष्ण को गोद में उठाकर अपना दूध पिलाने लगी। श्रीकृष्ण सब जान गये और वे क्रोध करके अपने दोनों हाथों से उसका कुच थाम कर उसके प्राण सहित दुग्धपान करने लगे। उसकी भयंकर गर्जना से पृथ्वी, आकाश तथा अन्तरिक्ष गूँज उठे। बहुत से लोग बज्रपात समझ कर पृथ्वी पर गिर पड़े। पूतना अपने राक्षसी स्वरूप को प्रकट कर धड़ाम से भूमि पर बज्र के समान गिरी, उसका सिर फट गया और उसके प्राण निकल गये बताया कि श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करने से जीवन मे सुख शांति का समावेश होता है। धर्म के प्रति आस्था बढ़ती है। जहां भी जिस समय भी श्रीमद् भागवत कथा सुनने का अवसर प्राप्त हो, इस अवसर को कभी भी नही छोड़ना चाहिए। भजन में ही जीवन का सार होता है। प्रारंभ में यजमान परिवार के द्वारा व्यास गादी की पूजा अर्चना की गई। कथा वाचक शास्त्री ने माता पिता की सेवा किए जाने का आवश्यक बताते हुए कहा कि जिस ने भी माता पिता की निस्वार्थ भाव से सेवा कर ली। समझ लो उसने सभी तीर्थों की यात्रा करली। माता पिता के चरणों में ही तीर्थ है। उन्होंने कहा कि चौरासी लाख योनियों मे भटकने के बाद यह मानव तन मिला है इसका उपयोग सत्य के मार्ग पर चलने में लगा दो । जन्म सफल हो जाएगा। उन्होंने बताया कि श्रीमद् भागवत कथा श्रवण करने से जीवन में भगवान की भक्ति जाग्रत हो जाती है। संसार में चारो और मोह माया व्याप्त है जिसमें मानव फंस कर अपने अमूल्य जीवन को नष्ट कर रहा है। जबकि मनुष्य का शरीर अनेक जन्मों के पुण्यों के फल स्वरुप प्राप्त हुआ है। जिसका उद्देश्य संसार में परमात्मा के चरणों का आश्रय लेकर सदाचारी रुप से जीवन यापन करके मोक्ष प्राप्त करना चाहिए, लेकिन भटकाव के कारण मानव इस संसार को नित्य मान लेता है। जबकि परमात्मा ही इसके मूल में सत्य रूप में विराजमान है। उनकी भक्ति का प्रादुर्भाव हम सभी को भागवत श्रवण से प्राप्त होता है। कथा के दौरान आज गोवर्धन पूजन का आयोजन किया एवं छप्पन भोग का प्रसाद वितरण हुआ। कथा मैं ग्राम एवं क्षेत्र से बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए।