जामताड़ा जिले के उर्दू विद्यालयों की स्थिति जस की तस : रहमतुल्लाह रहमत
एम – रहमानी जामताड़ा
जामताड़ा : जामताड़ा जिला के उर्दू विद्यालयों की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर हुई। राष्ट्रीय स्तर के बहुत सारे अखबार एवं टीवी चैनल ने जामताड़ा जिला में उर्दू को लेकर जो आंदोलन हुए और सरकार ने त्वरित एक्शन लेते हुए जो आदेश पारित किया , इसको लेकर खूब चर्चा किया। लेकिन विद्यालयों की दीवारों से सिर्फ उर्दू शब्द हटाया गया बाकी सारी बातें जस की तस रही । उक्त बातें स्वतंत्र विचारक एवं साहित्यकार रहमतुल्लाह रहमत ने कही। उन्होंने कहा कि जामताड़ा जिला में दशकों से जो उर्दू विद्यालय थे उनकी संख्या जिला शिक्षा अधीक्षक जामताड़ा के कार्यालय से निर्गत 9 जुलाई 2022 के पत्रांक 588 के मुताबिक लगभग आधी कर दी गई अर्थात सिर्फ 8 विद्यालय को उर्दू विद्यालय के नाम से संबोधित किया गया । फिर तीन-चार दिनों के अंदर जिला शिक्षा अधीक्षक को लगा कि उर्दू विद्यालयों की संख्या कुछ ज्यादा ही अंकित हो गई है और 13 जुलाई 2022 के पत्रांक 662 के अनुसार 8 विद्यालयों की संख्या को घटाकर सिर्फ चार कर दी गई और कहा गया कि पूरे जिले में अब सिर्फ चार उर्दू विद्यालय ही रहे बाकी जितने भी विद्यालय हैं सब सामान्य विद्यालय हैं अर्थात इन 4 विद्यालयों को छोड़कर किसी भी विद्यालय में उर्दू शब्द तक लिखा हुआ नहीं होना चाहिए । उन्होंने कहा कि जिला शिक्षा अधीक्षक जामताड़ा ने सिर्फ चार विद्यालयों को उर्दू विद्यालय कहा है, बाकी सभी विद्यालयों को सामान्य विद्यालय की सूची में रखा है तो क्या उन 4 विद्यालयों में नेचर और नरिशमेंट पूरा कर दिया गया है या सिर्फ उन विद्यालयों के नाम ही उर्दू विद्यालय रहेंगे । सरकारी उर्दू विद्यालय का मतलब होता है कि उक्त विद्यालय का नाम उर्दू में लिखा हुआ होगा, उसमें पढ़ाने वाले सारे शिक्षक उर्दू भाषी होंगे तथा उन विद्यालयों में हिंदी और अंग्रेजी भाषा की किताब को छोड़कर सारे विषयों की किताबें उर्दू माध्यम में उपलब्ध कराई जाएंगी । क्या जामताड़ा जिला के चारों उर्दू विद्यालयों में नेम, नेचर और नरिशमेंट पूरा हो गया ? अगर नहीं तो जिला प्रशासन विद्यालयों की दीवारों से सिर्फ नाम हटाने के लिए इतनी सक्रिय क्यों हो गई ? सरकारी आदेश पालन के लिए विभाग सक्रिय हो जाता है लेकिन व्यवस्था बहाल करने के लिए ना तो विभाग सक्रिय हो पाता है और ना ही सरकार सक्रिय हो पाती है , आखिर क्यों ? उन्होंने कहा कि जिला शिक्षा अधीक्षक कार्यालय जब चार दिनों के अंदर अपने ही आदेश को संशोधित करके दूसरा आदेश जारी कर सकता है तो इतने दिन हो गए बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए इस पर चिंतन मनन क्यों नहीं करता ? उन्होंने कहा कि जामताड़ा जिला के चारों उर्दू विद्यालयों में ना तो उर्दू भाषी शिक्षक हैं और ना ही उर्दू माध्यम की किताबें । कुल मिलाकर कहा जाए तो इन चारों विद्यालयों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों का भविष्य अधर में लटका हुआ है और इसके जिम्मेवार कोई और नहीं बल्कि सरकार व शिक्षा विभाग हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा विभाग बच्चों के भविष्य के बारे में ख्याल करें और सरकार से उर्दू माध्यम की किताबें तुरंत मुहैया कराने के लिए कहें। अगर ऐसा नहीं हो पा रहा है तो किसी भी निजी संस्थान अथवा प्रकाशन को पुस्तकें प्रकाशित करने की अनुमति प्रदान करें । यह विदित हो कि दूसरे राज्यों में जहां किसी कारणवश उर्दू माध्यम से किताबें प्रकाशित नहीं हो पाई हैं निजी संस्थानों एवं प्रकाशनों से उर्दू माध्यम की किताबें उपलब्ध कराई गई हैं।