April 29, 2024
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उर्दू विद्यालय अब सिर्फ नाम के रह गए हैं : रहमतुल्लाह रहमत

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उर्दू विद्यालय अब सिर्फ नाम के रह गए हैं : रहमतुल्लाह रहमत

एम – रहमानी जामताड़ा

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जामताड़ा : झारखंड राज्य में उर्दू विद्यालय अब सिर्फ नाम के रह गए हैं काम के बिल्कुल नहीं। उक्त बातें साहित्यकार रहमतुल्लाह रहमत ने कही। उन्होंने कहा कि एक साजिश के तहत सरकार ने उर्दू माध्यम की किताबें छापना बंद किया और पहले से चलते आ रहे उर्दू विद्यालय में उर्दू भाषी शिक्षकों को अन्य भाषा- भाषी क्षेत्र में भेजने की ओर विशेष ध्यान दिया । दूसरी ओर उर्दू भाषी शिक्षक सिर्फ उर्दू की एक किताब पढ़ा पाने में ही सक्षम हो पाने लगे । जब उर्दू माध्यम की अन्य सारी किताबें प्रकाशित होना बंद हो गई तो उनका ध्यान भी सिर्फ एक विषय पर ही केंद्रित हो गया । आज स्थिति यह है कि सरकारी विद्यालयों में कार्यरत उर्दू भाषी शिक्षक सिर्फ एक विषय उर्दू को ही पढ़ा पा रहे हैं ।अगर उन्हें विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, गणित एवं अन्य विषयों की किताबें उर्दू माध्यम में पढ़ाने के लिए कह दिया जाए तो 90% शिक्षक दाएं बाएं देखना शुरु कर देंगे । जहां तक मैं जानता हूं खासकर उर्दू मध्य विद्यालयों में कार्यरत 90 प्रतिशत उर्दू भाषी शिक्षक भौतिकी, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान, भूगोल, इतिहास, नागरिक शास्त्र एवम् गणित की किताबों को उर्दू भाषा में नहीं पढ़ा सकते। मैंने बहुत सारे उर्दू भाषी शिक्षकों से टेस्ट लिया है । उन्होंने कहा की उर्दू की स्थिति को यहां तक पहुंचाने में सरकार के साथ-साथ ग्रामीणों का भी दोष रहा है । ग्रामीणों ने पहले कभी भी इस बात के लिए आंदोलन नहीं किया कि उर्दू विद्यालयों में बच्चों को उर्दू माध्यम से सभी विषयों की शिक्षा दी जाए। उनका ध्यान सिर्फ इस बात पर रहा कि दीवारों पर अथवा बिल्डिंग पर स्कूल के नाम के आगे या पीछे उर्दू शब्द लिखा हुआ रहना चाहिए। उर्दू शब्द किसी भी सूरत में नहीं मिटना चाहिए। जब इस तरह के आंदोलन को आगे बढ़ाया गया तो सरकार ने भी एक्शन लिया और कहा कि 24 घंटे के अंदर जिन जिन स्कूल भवन में उर्दू शब्द लिखा हुआ है वह मिट जाना चाहिए वरना संबंधित पदाधिकारी अथवा समिति पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी फिर क्या था लोग रातों-रात सीढ़ी लगा- लगा कर उर्दू शब्द को अपने हाथों से मिटाने लगे अथवा मिटवाने लगे। उन्होंने कहा कि वह निष्पक्षता के साथ कहना चाहता है कि अगर आज की तिथि से उर्दू विद्यालयों में उर्दू भाषी शिक्षक जिन्हें उर्दू भाषा में सभी विषयों के शिक्षण की महारत है (हालांकि ऐसे शिक्षकों की संख्या नगण्य है) बच्चों को शिक्षा देने लगे तो किसी भी बच्चे को कुछ भी समझ में नहीं आएगा क्योंकि वे बच्चे हिंदी भाषा में सभी यूनिवर्सल सब्जेक्ट्स को शुरू से ही पढ़ते आ रहे हैं । इस गैप को पूरा करने में कम से कम एक दशक तो लग ही जाएगा । उन्होंने कहा कि सरकार और पब्लिक को मिल बैठ कर एक सकारात्मक हल ढूंढना चाहिए । उन्होंने कहा कि इस बात का भी विशेष ध्यान रखा जाए कि यह युग कंपटीशन का युग है इस युग में किस भाषा को लेकर चलें कि हमारे बच्चे हर तरह की प्रतियोगिताओं में सफल हो सके और राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगी परीक्षाओं में भी सफलता प्राप्त कर सके ।

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