झारखंड स्थापना दिवस पर आईलेक्स पब्लिक स्कूल में वाद-विवाद प्रतियोगिता का हुआ आयोजन, भगवान बिरसा मुंडा को किया नमन
झारखण्ड का इतिहास अपने आप में प्रेरणादायक है : शैलेश कुमार
संवाददाता : बरही
आईलेक्स पब्लिक स्कूल में भगवान बिरसा मुंडा की जयंती एवं झारखंड स्थापना दिवस धूमधाम से मनाई गई। बताया कि अपने अतीत से निकलकर स्वर्णिम भविष्य की राह पर आगे तेजी से आगे बढ़ रहा झारखंड आज अपना 22वां स्थापना दिवस मना रहा है। 15 नवंबर 2000 को झारखंड राज्य की स्थापना हुई थी। आज ही के दिन बिहार से अलग होकर एक अलग राज्य के रूप में झारखंड अस्तित्व में आया था। इस अवसर पर आईलेक्स के निदेशक शैलेश कुमार ने सभी विद्यार्थियों को झारखंड स्थापना दिवस की शुभकामनाएं दी। साथ ही जयंती पर बिरसा मुंडा को भी याद किया। भगवान बिरसा को याद करने के बाद आईलेक्स के विद्यालय परिसर में एक वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसका विषय झारखण्ड का अतीत, वर्तमान और भविष्य था जिसमें नवमी कक्षा और दसवीं कक्षा के विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया।
बच्चों को उनकी इच्छा के अनुसार तीन ग्रुप में बांटा गया। झारखण्ड अतीत ग्रुप में मधु, अमीषा, सृष्टि, सुधा, सूरज, श्वेता, नंदिनी, प्रीति, अफशा ने हिस्सा लिया और अपने विचार रखे। श्वेता ने अपने विचार रखते हुए झारखण्ड के बिहार से अलग होने के कारणों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भौगोलिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक-तीनों दृष्टि से देखा जाए तो झारखंड हमेशा से ही बिहार से पृथक् एक परिचय लेकर रहा। सूरज ने झारखण्ड के भौगोलिक स्थिति पर प्रकाश डालते हुए बताया कि झारखण्ड वन और पठारी इलाका था। यहां अयोध्या पहाड़, सारंडा सिंहभूम श्रृंखला, लातेहार श्रृंखला, चांडिल-गम्हरिया श्रृंखला जैसे पहाड़ी श्रृंखलाएं हैं। और वनांचल भी बहुतायत हैं। अमीषा ने झारखण्ड के ऐतिहासिक स्थिति के बारे में बताया कि यहां पर 32 जनजातियां मूलवासी हैं जिनमें संथाल, उरांव, मुंडा, हो, महली, भूमिज, चेरो, खड़िया बिरहोर, लोहरा, करमाली बस कुछ हैं। यहां के मूलवासियों की जीवनशैली और मान्यताएं बिहार के मूलवासियों से अलग हैं। ये सरना धर्म को मानते हैं जो प्रकृति पूजन पर आधारित है। 1845 के आसपास ईसाई मिशनरी झारखण्ड में आने लगे और कई गरीब आदिवासी धर्म परिवर्तन करने लगे। यहां पर मधुबनी, नालंदा, मगध का प्रभाव नागवंशी और चेरो राजवंश की अपेक्षा कम रहा।
मधु ने सांस्कृतिक पृष्ठभूमी और धर्म अलग होने के कारण रीति-रिवाज , मान्यताएं , समाज के नियम, पर्व, खान -पान भी यहाँ बिहार से भिन्न था। यहाँ सरहुल, सोहराय, माघे पर्व जैसे प्रकृति से जुड़े पर्वों को मनाया जाता था। संजातीय तरीके से भी देखा जाए तो बिहार और झारखण्ड लोगोंं के पूर्वज अलग अलग जड़ों से थे -एक इंडॉ-आर्यन और दूसरे ऑस्ट्रलोएड। तीनों दृष्टिकोण से झारखण्ड और छोटनागपुर पठार एक ऐसी जगह है जहाँ तीन भिन्न धाराओं का संगम हैं – छत्तीसगढ़, बंगाल, ओडिशा। झारखण्ड वर्तमान ग्रुप में खुशी, पायल , रिशिका , तृप्ति, प्रिंस, बिट्टू, सुजल , गौतम, अनु, प्रताप ने हिस्सा लिया और अपने विचार रखे। सुधा ने बताया कि जब झारखण्ड की स्थापना हुई तो उसके उद्देश्य काफी थे लेकिन उसकी पूर्ति के रास्ते काफी कठिन थे। लेकिन फिर भी आज झारखण्ड ने हर क्षेत्र में अपना एक अलग मुकाम तय किया है। पायल ने बताया कि पहले जहाँ रोजगार के अवसर न के बराबर थे, कोई भी कंपनी निवेश करने से कतराती थीं। लेकिन आज देश हीं नहीं विदेश कि भी जानी मानी कम्पनियाँ भी निवेश कर रही हैं। तथा साथ हीं साथ रोजगार के नये नये अवसर भी मिल रहे हैं। खुशी ने भी बताया कि झारखण्ड ने हर क्षेत्र में शिक्षा, खेल, राजनीती हर क्षेत्र में अपना मुकाम हासिल किया है।
झारखण्ड भविष्य ग्रुप में सागर, सोनू, सूरजदेव, अजीत, आदित्य, सचिन , सौविक ने हिस्सा लिया और अपने विचार व्यक्त किये। सागर ने बताया कि जिस तरह से आज के समय में बड़ी – बड़ी कंपनी झारखण्ड में निवेश कर रहे हैं उस हिसाब से तो आनेवाला वक़्त झारखण्ड के लिए सवर्णिम होगा। अजीत ने बताया कि जिस तरह हमारे झारखण्ड की राज्यपाल रहा चुकी माननीया द्रोपदी मुर्मू आज देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हैं तो वें बहुतों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। आनेवाला समय कई ऐसे चेहरे नजर आएंगे। मौक़े पर मौजूद विद्यालय के निदेशक शैलेश कुमार ने कहा कि आप जब कोई मुकाम हासिल करते हैं तो आपके साथ साथ आपकी जन्मभूमि का भी नाम रौशन होता है। तो हमें अपने कर्म ऐसे रखने चाहिए जिससे देश – दुनिया में भी झारखण्ड का नाम चमक सके। और इसके लिए हमें अभी से प्रतिज्ञाबद्ध होना होगा।