हाय रे पगड़ी इसकी महत्ता को आलेख किये प्रो राजेंद्र यादव
शिव शंकर शर्मा
इचाक :
जे एम कॉलेज, के प्रो राजेंद्र यादव ने पुरी व्याख्यान करते हुवे बताया कि भारतीय संस्कृति में मान सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता था पगड़ी। पौराणिक काल में पगड़ी का इतना महत्व था कि यदि किसी की पगड़ी गिर गई तो समझो उसका वह दिन ही गिर गया ।क्योंकि वह बड़े-बड़े प्रण भी सर की पगड़ी की सौगंध लेकर करते थे। लेकिन भारत की समृद्ध ,संस्कृति एवं रीति रिवाज आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में खोती जा रही है । पगड़ी आदमी के व्यक्तित्व की निशानी समझी जाती थी। पगड़ी की खातिर आदमी स्वयं को बर्बाद होना तक पसंद करता था ।मगर उस पर आंच नहीं आने देता था ।लेकिन अफसोस वह पगड़ी आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। उसे हम यत्र- तत्र जहां-तहां देख सकते हैं ।वही पगड़ी जिसे लड़के के पिता के चरणो में रखकर बेटी का बाप अपनी इज्जत बचाने का भीख मांगा करता था ।
वही पगड़ी आज नालियों में ,कूड़ेदान में ,कचरे के ढेरों पर तथा झाड़ियों में देखने को बड़ी आसानी से मिल रहा है ।वही पगड़ी जिससे ड्रावर की शोभा बढ़ती थी ,वही अपनी दुर्दशा की आंसू बहा रहा है ।बेटी के जन्म से ही जो पिता एक-एक पाई जोड़कर विवाह जैसे समारोह में अपनी पगड़ी का लाज रखने के लिए क्या कुछ नहीं करता है। लेकिन अफसोस विदाई के मंजर के बाद यत्र -तत्र पड़ा पगड़ी देखकर उसका दिल बैठ जाता होगा । तो क्या या वही पगड़ी है जो आस्था, सम्मान ,स्वाभिमान, साहस , अध्यात्मिकता और पवित्रता का प्रतिनिधित्व करता था ।भारतीय मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि जिसको हम आदर और सम्मान देते थे ,उसे पगड़ी पहनाते थे। वही पगड़ी जो सिर पर धारण करते थे समय और परिस्थिति ने उसे अंगरख्खा बनाकर कंधों पर धारण करवाया और आज नालियों और कूड़े के ढेरों पर। सावधान !अब हमें जागना होगा। यदि भारत की संस्कृति और आध्यात्मिक पहचान को बरकरार रखना है ,तो हमें मांगलिक या धार्मिक परंपराओं को बचाना होगा।