May 17, 2024
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जीव मुक्ति हेतु भगवत कृपा सर्वोपरि : गोविंद दास महाराज

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जीव मुक्ति हेतु भगवत कृपा सर्वोपरि : गोविंद दास महाराज

 

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झारखंड न्यूज 24

बासुदेव

नाला

 

नाला प्रखंड क्षेत्र के गेड़िया गांव में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन बाबा कालींजर मंदिर परिसर हुआ है जिससे चारों ओर भक्ति बयार प्रवाहित होने लगी है। कथामृत प्रस्तुतिकरण के तृतीय रात्रि में वृन्दाबन धाम के कथावाचक गोविंद दास जी महाराज ने “भक्त प्रहल्लाद चरित्र, नरसिंह अवतार, हिरणकश्व बध एवं ध्रुव चरित्र” प्रसंग आदि के बारे में मधुर वर्णन किया।

कथावाचक ने धुव्र चरित्र का वर्णन करते हुए कहा की संसार का जीव मात्र उत्तानपाद है। महाराज उत्तानपाद की सुनीति व सुरूचि नाम की दो पत्नियां थीं जो न्याय-धर्म व महापुरुषों के आचरण से युक्त थी। उस सुनीति के बेटे का नाम ध्रुव था और जिसकी लालसा सर्वदा संसार के साधनों को भोगने में ही रहती थी। सुरूचि के पुत्र उत्तम, जो भगवान से विमुख रहने वाला व संसार के विषयों में आसक्ति से युक्त था। ध्रुव जो समस्त मार्गनिर्देशकों का मार्गदर्शक है, जो चल नक्षत्रों में स्थिर है, जिसका विवाहसंस्कारादि शुभ कार्यों में स्मरण किया जाता है, जिसकी नक्षत्र मंडल परिक्रमा करता है तथा जो अविनाशी परमानंद स्वरूप है, वह मातृ-पितृ भक्त, निर्गुण सगुण भगवान् का परम आराधक था।

भगवान के परम-प्रियभक्त व देवर्षि नारदजी के शिष्य, अविचल धाम के अधिष्ठाता एवं संस्कारवान बालक ध्रुव की ही तो बात है। यदि तुझे पिता की गोद या पिता का सिंहासन चाहिए तो परम पुरुष भगवान् नारायण की आराधना करके, उनकी कृपा से मेरे गर्भ में आकर जन्म ले तभी राजसिंहासन की इच्छा पूर्ण होगी। ध्रुव भगवान् नारायण के चरण कमलों की आराधना में लगे।

हिरणकश्व बध प्रसंग का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि हिरनाक्ष दैत्य ने घोर तप किया जिससे तुष्ट होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए। कहा ‘तप प्रवान’ मांग लो जो मांगना है। यह सुनकर हिरनाक्ष ने अपनी आंखें खोलीं और ब्रह्मा जी को अपने समक्ष खड़ा देखकर कहा-‘प्रभु मुझे केवल यही वर चाहिए कि मैं न दिन में मरूं, न रात को, न अंदर, न बाहर, न कोई हथियार काट सके, न आग जला सके, न ही मैं पानी में डूब कर मरूं, सदैव जीवित रहूं। विष्णु भगवान ने हिरनाक्ष को मारने के लिए अपने प्रयत्न आरम्भ कर दिए। हिरनाक्ष ने अपने पुत्र प्रहलाद से पूछा प्रहलाद ने उत्तर दिया-‘आप मेरे पिता हो, पिता जी आप का नाम लेता क्या मुझे शोभा देता है। पिताजी का तो आदर करना चाहिए, प्रहलाद मुस्कराता हुआ बोलता जा रहा था। वह निर्भय था मेरी मृत्यु नहीं तुम्हारी मृत्यु आई है। यह कह कर हिरनाक्ष तलवार उठाने ही लगा था कि खम्भा फट गया उस खम्भे में से विष्णु भगवान नरसिंघ का रूप धारण करके जिसका मुख शेर का तथा धड़ मनुष्य का था। प्रगट हुए भगवान नरसिंघ अत्याचारी दैत्य हिरनाक्ष को पकड़ कर उदर चीर कर बध किया।

इस धार्मिक प्रसंग एवं अनमोल वचन तथा जीवन जीने का सरल मार्ग को आत्मसात करने के लिए श्रोताभक्त देर रात तक एक ही जगह बैठे रहे। कथा के साथ साथ भजन संगीत भी प्रस्तुत किया गया जिससे उपस्थित श्रोतागण भावविभोर हो कर कथा स्थल पर भक्ति से झुम उठे।

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