*झारखंड राज्य आजीविका कैडर संघ के बैनर तले बी ए पी एवं पी आर पी का आज दूसरे दिन भी जारी रहा सामूहिक अवकाश*
*पोटका/पुर्वी सिंहभूम/झारखण्ड*
*सुरेश कुमार महापात्रा की रिपोर्ट*
पोटका-झारखंड राज्य आजीविका कैडर संघ के बेनर तले समस्त झारखंड के बी ए पी एवं पी आर पी ने अपने मांगों को लेकर आजीविका के कामकाज को ठप कर आज दूसरे दिन भी सामूहिक अवकाश पर रहे। पी आर पी एवं बी ए पी का कहना है कि यह हड़ताल तब तक जारी रखेंगे जब तक हमारी जायज मांग को सम्मान नही मिलता है। संघ के पुर्वी सिंहभूम ज़िला अध्यक्ष संजुक्त नायक ने एक प्रेस बयान जारी कर कहा कि जेएसएलपीएस में कार्यरत पीआरपी और बीएपी को सम्मानजनक मानदेय और सामाजिक सुरक्षा का लाभ नहीं देना सरकार की मजदूर विरोधी नीति को दर्शाता है। एक तरफ सरकार महिला सशक्तिकरण के लिए बड़ी-बड़ी बातें करती है दूसरी तरफ आजीविका में कार्यरत हम सब अपने घर परिवार को छोड़कर दूसरे अलग-अलग जिले में ग्रामीण स्तर पर महिलाओं का क्षमता वर्धन के लिए दिन रात एक कर कड़ी मेहनत के साथ धरातल पर कार्य करते हैं उन्होंने कहा कि 2014 से जेएसएलपीएस में ग्राम पंचायत स्तर पर पीआरपी और बीएप के द्वारा ग्राम स्तर पर गरीब परिवारों को संगठित कर क्षमता वर्धन हेतु लगातार सेवा देते आ रहे हैं, तत्पश्चात वर्तमान समय में हमारा मानदेय व्यक्तिगत खाते से हटाकर वेतन में कटौती करते हुए संगठन के माध्यम से वेतन भुगतान की जाती हैं इस प्रक्रिया के तहत मानदेय लेने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है उन्होंने कहा कि मुख्यता हमारा संघ का 4 सूत्री मांग है पहला हमारा मानदेय पूर्व के भांति व्यक्तिगत खाते में दिया जाए ,दूसरा वर्तमान स्थिति को देखते हुए मानदेय में बढ़ोतरी की जाए, तीसरा एक निश्चित समय पर मानदेय भुगतान किया जाए तथा चौथा अनुभव एवं शैक्षणिक योग्यता के अनुसार HR पॉलिसी से जोड़ा जाए यदि उपरोक्त 4 सूत्री मांगों को पूरी नहीं की जाती है तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा क्योंकि यह हमारे अधिकारों का हनन है । जहां हर क्षेत्र में कार्यरत अधिकारियों को महंगाई को देखते हुए मानदेय में वृद्धि की जा रही है वहीं हमें मानदेय में वृद्धि तो नहीं कई तरह के प्रताड़नाओं से गुजर कर काम करना पड़ रहा है ,यहां तक की व्यक्तिगत तौर से काम के लिए भी व्यक्तिगत खाते में पैसे हमें नहीं मिलते हैं । महिला सशक्तिकरण के नाम पर उनके अधिकारों के साथ हो रहा है खिलवाड, अगर इन 4 सूत्री मांगों पर सरकार जल्द सम्मानजनक फैसला नहीं लेती है तो महिलाएं उग्र आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगी।