आईएचएम रांची ने खाद्य (एड़ीबल) कटलरी डिजाइन प्रतियोगिता” में शीर्ष 7 संस्थानों में बनायी जगह
झारखंड न्यूज 24
मांडर
इंस्टिट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट(आईएचएम) राँची ने पर्यटन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा एनसीएचएमसीटी, नॉएडा के समन्वय से दिनांक 15.01.2024 को इंडियन कलिनरी इंस्टिट्यूट, नोएडा में आयोजीत “एड़ीबल कटलरी डिजाइन प्रतियोगिता” में देशभर के सभी होटल प्रबंधन संस्थानों में शीर्ष 7 में अपनी जगह बनाकर एक नया कृतिमान स्थापित किया है।
इस प्रतियोगिता में पूरे देशभर के कुल 23 होटल प्रबंधन संस्थानों ने भाग लिया, जिसमें आईएचएम राँची के प्राचार्य डॉ.भूपेश कुमार के नेतृत्व् एवं डॉ लाडली रानी, बायो टेक्नोलॉजी विभाग, रांची विश्वविद्यालय और श्री प्रवीण रमन, सम्पादक, हैलो लाइफ पत्रिका के मार्ग दर्शन में शेफ टॉम थॉमस, व्याख्याता तथा तृतीय वर्ष के छात्र श्री सारांश सोनी एवम श्री अलंकृत सहाय ने मडुआ से बने खाद्य कटलरी/क्रोकरी जैसे चमच, कटोरी, प्लेट एवम ग्लास इत्यादी प्रस्तुत की। प्रतियोगिता के निर्णायक मंडली में भारत के नामी गिरामी शेफ मंजीत गिल, शेफ निशांत चौबे एवम पर्यटन मंत्रालय,भारत सरकार के 3 अधिकारीयों ने मूल्यांकन किया। शीर्ष 7 संस्थानों में आईएचएम राँची, आईएचएम मुंबई, आईएचएम रायपुर, आईएचएम गुरदासपुर, एआईएचएम चंडीगढ़, एसआईएचएम इंदौर, एवं आईएचएम लखनऊ शामिल रहें। डिजाइन कटलरी प्रतियोगिता में शीर्ष 3 विजेताओं हेतु अंतिम निर्णय के लिए प्रतियोगिता, दिल्ली में, फरवरी माह के पहले हफ्ते में आयोजित की जायेगी तथा विजेताओं को प्रथम पुरस्कार 2 लाख रुपये, द्वितीय पुरस्कार 1.5 लाख रुपये तथा तृतीय पुरस्कार 1 लाख रुपये राशि एवम प्रमाण पत्र पर्यटन मंत्रालय द्वारा प्रदान की जायेगी। आईएचएम राँची के प्राचार्य डॉ. कुमार ने इस कृतिमान हेतु संस्थान को ढेरों बधाई तथा पूरी टीम के साथ छात्रों की कड़ी मेहनत की सराहना करते हुए बताया की यह संस्थान के साथ साथ पर्यटन विभाग, झारखंड सरकार के लिए बहुत गर्व की बात है की संस्थान अपने स्थापना के पश्चात एक के बाद एक नया मुकाम हासिल कर रहा एवम पूरे भारतवर्ष के संस्थानों में शीर्ष स्थान भी प्राप्त करने एवम जिस उद्देश से पर्यटन विभाग, झारखंड सरकार द्वारा इसकी स्थापना की गयी उस ओर निरंतर अग्रसर भी है। साथ हीं बताया की मड़ुआ से बने खाद्य कटलरी के मुख्य फायदे यह है की इसके इस्तेमाल के पश्चात इसे खाया भी जा सकता है या अगर इसे उपयोग के बाद फेका जाये तो यह मृदा में मिल जाता जिससे पर्यावरण प्रदूषित होने से भी बचाएगा तथा यह कटलरी स्वयं जीवन होती है एवं इसका उपयोग लम्बे समय तक किया जा सकता है | साथ हीं मडुआ की विविध उपयोग से इसे वैश्विक स्तर पर पहचान मिलने में सहायता भी मिलेगी।