रमजान और रामनवमी दोनों का एक ही संदेश त्याग संयम करूणा दया और भाईचारगी, अलीरजा अंसारी
एक साथ कई त्यौहार का आनंद सिर्फ भारतीय ले सकते हैं
झारखंड न्यूज़ 24
ब्यूरो रिपोर्ट लोहरदगा
लोहरदगा कैरो में रमजान के पवित्र महीने में रामनवमी का त्यौहार अपने प्यारे मुल्क भारत में सभी समुदायों के बीच शांति, सद्भावना, सहिष्णुता और आपसी विश्वास तथा प्रेम को प्रगाढ़ करने वाला होना चाहिए। मुस्लिमों का पवित्र महीना रमजान हमें गुनाहों से बचने, अल्लाह को राजी करने के लिए अपने प्रिय चीजों का त्याग करने, करूणा और दया के साथ ही उच्च मानवीय और नैतिक मूल्यों की सीख देता है।’सदका-ए-फित्र’ और ‘जकात’ का कॉंसेप्ट विश्व भर में आर्थिक असमानता को दूर करने और सभी को साथ लेकर आगे बढ़ने का अद्भुत तरीका है। हिंदू धर्म के त्यौहारों में भी ‘रोजा’ यानि उपवास विशेष महत्व रखता है। नवरात्रि, तीज, गणेश चतुर्थी, कृष्ण जन्माष्टमी इत्यादि त्यौहार में उपवास कर ईश्वर की आराधना की जाती है। और रामनवमी का त्यौहार तो मां-पिता की इच्छाओं के सम्मान में वैभवपूर्ण जीवन का त्याग,भाई-भाई के बीच अथाह प्रेम, करूणा, वीरता और सद्भावना का प्रतीक ही है। स्पष्ट है कि कोई भी धर्म वैमनस्यता की सीख नहीं देता तो कोई भी त्यौहार में हमारे बीच आपसी विश्वास और भाईचारगी अधिक प्रगाढ़ होनी चाहिए। ये बातें प्रखंड की स्वयं सेवी संस्था मौलाना आजाद वेल्फेयर सोसायटी के संस्थापक एवं दस वर्षों तक चेयरमैन रहे अलीरजा अंसारी ने आज प्रेस से कहीं। उन्होंने कहा कि विश्व में भारत ही ऐसा देश है जहां जाति-धर्म, बोली-भाषा, रहन-सहन, खान-पान में इतनी विभिन्नता होने के बावजूद सभी एक साथ मिलकर रहते हैं। इसी मिट्टी ने अनगिनत महात्मा, उपदेशक, वलीअल्लाह, धर्मों के संस्थापकों को जन्म दिया है जिन्होंने पूरे विश्व में अमन, शांति, सांसारिक मोह-माया का त्याग और मानव सेवा का संदेश दिया है। ‘वसुदैव कुटुंबकम’ हिन्दू दर्शन की महत्वपूर्ण सिद्धांत है तो ‘पड़ोसी का ख्याल रखना’ इस्लाम का बहुत जरूरी पैगाम है।
श्री अलीरजा अंसारी ने कहा कि अधकचरी जानकारी, शोसल मीडिया के वाहियात कंटेंट और चंद सिरफिरे लोगों के अफवाह पर आज पढ़े-लिखे युवा जिनसे उनके माता-पिता को ही नहीं समाज और देश को बहुत आशाएं होती हैं, भटक जाते हैं और अपना बेहतरीन कैरियर बर्बाद कर देते हैं। युवाओं को यह समझना होगा कि क्षणिक आवेश में उनके द्वारा उठाया जाने वाला विवेकहीन कदम न केवल उनके बल्कि पूरे परिवार को तबाह व बर्बाद कर सकता है। भारत की लगभग 40 करोड़ की आबादी 15-29 साल के युवाओं की है, जिनमें अथाह उर्जा, क्षमता, कर्मशक्ति और देश को बुलंदियों पर ले जाने का सामर्थ्य छिपा है। इस पॉवर का सकारात्मक और राष्ट्र निर्माण की दिशा में प्रयोग कर नौजवान अपने परिवार सहित गांव और समाज के उत्थान में अपनी महती भूमिका निभा सकते हैं। इसलिए किसी भी परिस्थिति में हमें ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे हमारा परिवार और खानदान को शर्मसार होना पड़े। मनुष्य को धार्मिक होना ही चाहिए और धर्म कभी दो इंसानों के बीच नफरत और हिंसा की सीख नहीं देता है। कुल मिलाकर हर भारत वासी के लिए यह गर्व का विषय है कि यहां आदिकाल से ‘अनेकता में एकता’ चरितार्थ होते आया है और आगे भी होता रहेगा।हर नागरिक अपनी क्षमता और योग्यता को पहचान और परिमार्जन कर देश के विकास में अपना योगदान दे सकता है। हम सभी जाति-धर्म-समुदाय एक साथ भारत की उन्नति के लिए कदम बढ़ाते हैं तो दुनिया की कोई महाशक्ति हमें पछाड़ नहीं सकती।