विकसित झारखंड आज भी एक परिकल्पना, 23 वर्षों बाद भी नही बन सकी राज्य की कई नीतियां
अविकसितता, कुपोषण, साक्षरता, बेरोजगारी, प्रवासन, नक्सलवाद, गरीबी आदि जैसे कई चुनौतियों से जूझ रहा है राज्य
पत्रकार जयदीप सिन्हा की कलम से
संवाददाता : बरही
राज्य स्थापना के 23 वर्ष बाद भी झारखंड आज भी अपेक्षित विकास का सपना पूरा नहीं कर सका है. राजनीतिक उठा पटक और भ्रष्टाचार के गोते ने राज्य के विकास की पटरी को पूरी तरह बिछाने में सफल नहीं हो सका है. झारखंड की स्थानीयता नीति हो या सहायक अध्यापकों की नियमावली आज तक लंबित है। कोल विभाग हो अथवा डीवीसी का मुख्यालय आज तक झारखंड नही लाया जा सका और न ही इस दिशा में कोई सफल प्रयास किया जा सका. विभागीय भवनों का निर्माण तो हुआ परंतु मानव संसाधनों की कमी आज भी विद्यमान है। शिक्षा, विद्युत, प्रखंड या अंचल सभी जगह अधिकारी से लेकर कर्मियों की कमी के कारण एक व्यक्ति दो या दो से अधिक प्रभार देख रहे है। नतीजा सरकारी आदेश तो जारी होते है जो व्यवहार में कम देखे जाते है। आज भी राज्य अविकसितता, कुपोषण, कम साक्षरता स्तर, बेरोजगारी, प्रवासन, नक्सलवाद, गरीबी आदि जैसे कई चुनौतियों से जूझ रहा है। खनिज संपदाओं का अपार भंडार होने के बावजूद भी झारखंड में एक भी उद्योग स्थापित नहीं हो सके है। कुटीर उद्योग को बढ़ावा नही मिलने के कारण छोटे पूंजी वाले सड़क पर आ गए है. नतीजा प्रवासन बढ़ा है। हर एक सरकारी कार्यालय में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। आईएएस से लेकर जनप्रतिनिधि लूट में लगे हैं. झारखंड का निर्माण जिस उद्देश्य किया गया था वह आज भी अधूरा दिख रहा है। किस दिशा में यहां के समाजसेवियों और जनप्रतिनिधियों को सकारात्मक कदम उठाते हुए राज्य के विकास की गति को तेज करना होगा।